मित्रों कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके मन में गंदे और वासना के विचार उठते रहते हैं.मित्रों आज के इस वीडियो में हम आपको एक कथा के माध्यम से बताएंगे कि स्वयं बजरंग बली हनुमान जी ने गंदे विचारों को रोकने की वह कौन सी बातें बताई हैं तो चलिए मैं आपको वह कथा सुनाता हूं
नमस्कार दोस्तों आपका फिर से स्वागत है हमारे trendzplay.com शि नारद जी जब इंद्रलोक गए तो उन्होंने देखा कि इंद्रदेव रंभा उर्वशी मेनका के साथ भोग विलास में मग्न थे जब नारद जी इंद्रलोक पहुंचे तो इंद्रदेव उनसे मिलने भी नहीं आए जिससे नारद जी को बहुत दुख हुआ तब उनके मन में एक प्रश्न उठा कि लोग विषय भोग में इतना क्यों गठित है तब उन्होंने सोचा अगर कोई ऐसा हो जिसने अभी तक विषय भोग ना किया हो वही मुझे इस प्रश्न का उत्तर दे सकता है
तब उनको याद आती है महादेव के अवतार हनुमान जी की देवर्षि नारद जी ने विलंब ना करते हुए इंद्रलोक से प्रस्थान किया और जा पहुंचे हनुमान जी के पास तब हनुमान जी तपस्या में लीन थे जैसे ही नारद मुनि वहां पहुंचे तब
हनुमान जी ने आंखें खोली और देवर्षि नारद जी से बोले हे नारायण भक्त देवर्षि नारद जी आप आज हमारे पास आए हैं कोई अनहोनी हुई क्या मुझसे या फिर किसी पर कोई संकट आया है क्या ?
तब देवर्षि नारद जी बोले हे संकट मोचन हनुमान ऐसी कोई बात नहीं है मुझे बस आपसे एक प्रश्न का उतर उत्तर जानना था तब हनुमान जी ने कहा कि कहिए देवर्षि नारद जी आपका वह प्रश्न कौन सा है तब देवर्षि नारद जी बोले कि हे संकट मोचन हनुमान आपने आज तक किसी भी स्त्री को स्पर्श तक नहीं किया है ना तो आज तक आपने किसी के साथ विषय भोग किया है लेकिन मैं जब इंद्रलोक पहुंचा तो इंद्रजीत मुझे मिले तक नहीं क्योंकि वह रंभा मेनका उर्वशी के साथ वासना में व्याप्त थे
तब मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि मनुष्य के मन में यह वासना का विचार क्यों उठता है और इसे कैसे रोक सकते हैं
तब महाबली हनुमान जी बोले हे देवर्षि नारद जी अगर आपका प्रश्न यही है तो मैं आपको इस प्रश्न का उत्तर बताता हूं लेकिन इसके लिए आपको एक कथा सुननी होगी तब देवर्षि नारद जी बोले ठीक है संकट मोचन हनुमान मैं उस
कथा को पूरे मन और लगन के साथ पूरा अंत तक सुनूंगा और संपूर्ण वैकुंठ लोक में इसका विश्लेषण भी करूंगा तब हनुमान जी कथा को सुनाना प्रारंभ कहते हैं
दोस्तों आगे बढ़ने से पहले अगर आप हनुमान जी के भक्त हैं तो सच्ची श्रद्धा से कमेंट में जय हनुमान जरूर लिखें हनुमान जी आपकी सभी मनोकामनाएं को अवश्य पूर्ण करेंगे मित्रों आगे हनुमान जी कथा को सुनाना प्रारंभ कहते
हैं और कहते हैं कि एक बार एक युवक महर्षि के पास आया और महर्षि से बोला कि है गुरुजी मेरे मन में इतने गंदे विचार क्यों आते हैं मैं नहीं चाहता कि मेरे मन में गंदे विचार आए लेकिन फिर भी मेरे मन में हमेशा काम वासना के विचार उठते रहते हैं और मैं इनके बारे में सोच सोच कर बहुत परेशान हो जाता हूं मेरी ऊर्जा और समय यह सब सोचने में ही नष्ट हो जाती है और इन सबके विचारों की वजह से मैं कभी भी शांत नहीं रह पाता और मैं हमेशा ही स्त्रियों को देखकर मोहित हो जाता हूं गुरु जी मैं अपने आप को रोक नहीं पाता
महाबली हनुमान जी ने आगे कहा कि हे देवर्षि नारद जी महर्षि मुस्कुराए और उन्होंने उस युवक से पूछा क्या तुम्हें पता है यह काम वासना होती क्या है उस युवक ने उत्तर दिया कि मैं यह तो नहीं जानता कि काम वासना होती क्या है. पर गुरु जी यह जो भी चीज है बहुत बुरी चीज है फिर महर्षि ने उस युवक से कहा कि सबसे पहले तो तुम्हें यह समझना है कि प्राकृतिक रूप से जो भी चीज हमारे अंदर है वह बुरी नहीं है हमारे जीवन में उसका कुछ ना कुछ महत्व है वासना कोई बुरी बात नहीं है यह तो हमारे मन की एक भावना है जो हमें
किसी ना किसी चीज की कमी का एहसास करवाती है
और फिर हम उस चीज को पाने के लिए उस चीज की तरफ आकर्षित हो जाते हैं महर्षि आगे उस युवक को कहते हैं कि हे युवक जैसे अगर तुम्हारे पास धन की कमी है तो तुम में धन पाने की वासना उत्पन्न हो जाएगी तो वासना कुछ और नहीं बस एक प्रकार की कमी है
जो एक प्रकार की जरूरत का एहसास दिलाती है और जब यह जरूरत शारीरिक हो तो हम इसे काम वासना का नाम देते हैं
युवक ने महर्षि को कहा कि गुरु जी मुझे काम वासना का मतलब तो समझ में आ गया पर आप मुझे यह बताइए कि यह आती कहां से है और कैसे आती है.
हनुमान जी ने आगे कहा कि हे देवर्षि नारद जी तब उस महर्षि ने कहा कि काम वासना कहीं से आती नहीं है यह तो हमारे अंदर ही होती है और इसका होना तो जरूरी भी है अभी तो मानव जाति का विस्तार होगा अब उस युवक ने कहा जब यह हमारे अंदर ही है और जरूरी भी है तो फिर लोग इसे गलत क्यों बोलते हैं
तब महर्षि ने कहा कि यही तो समस्या है लोगों ने काम वासना को गलत तरीके से सोच लिया है इसे छुपाने की दबाने की कोशिश करते हैं काम वासना गलत नहीं है. बल्कि काम वासना का गलत तरीके से प्रयोग करना गलत बात है. लोग जिससे प्रेम करते हैं बस उसी के लिए जीने लग जाते हैं उसे पाना ही उनका अपना मार्ग बन जाता है और उसी के बारे में हमेशा सोचते रहते हैं पर यह सब गलत
हनुमान जी ने आगे कहा कि हे देवर्षि नारद जी महर्षि ने युवक से कहा क्या तुम्हें पता है जानवरों में भी काम वासना होती है, युवक ने उत्तर दिया हां गुरु जी जानवरों में भी काम वासना होती है क्योंकि जानवर भी तो आखिर अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए मादा
के साथ व्यभिचार करते हैं उस महर्षि ने आगे कहा कि हम जानवरों की काम वासना को गलत क्यों नहीं कहते युवक ने कहा गुरुजी मुझे इस का उत्तर नहीं पता युवा आगे कहता है कि महात्मा आप ही मुझे बताइए
तब महर्षि ने कहा कि जानवर अपनी काम वासना का प्रयोग आनंद प्राप्ति के लिए नहीं करते वह तो सिर्फ संतान उत्पत्ति करने के लिए काम वासना का उपयोग करते हैं जानवरों को प्रकृति ने इतनी समझ नहीं दी है कि वह काम वासना को अपने सुख का आधार बना सके
हनुमान जी ने आगे कहा कि हे देवर्षि नारद जी वह महर्षि आगे बोला कि मनुष्य अपनी समझ के बलबूते पर प्र में पाई जाने वाली प्रत्येक वस्तु को अपने सुख के लिए प्रयोग करता है हम इंसानों ने ही काम वासना को अपने सुख का साधन बना लिया है परंतु प्रकृति ने तो
इसे हमें अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए दिया था लेकिन प्रत्येक इंसानों ने इसे अपने जीवन का परम लक्ष्य बना रखा है और इस तरह से काम वासना का आ जाना गलत है
हनुमान जी ने आगे कहा कि के देवर्षी नारद जी युवक ने पूछा महात्मा जी यह काम वासना हम पर हावी क्यों होती है यह हमेशा ही क्यों आ जाती है तब उस महात्मा ने कहा कि सुनो अब मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं उसे तुम ध्यान पूर्वक सुनना तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों का जवाब तुमको मिल जाएगा बस तुम्हें ध्यान से सुनकर समझना है। युवक ने कहा ठीक है गुरुजी।
वह महर्षि आगे कहता है एक बार की बात है एक आश्रम में एक गुरु और उनके शिष्य रहा करते थे। सभी बच्चे रोजाना आश्रम के बाहर स्थित देवरिया नामक एक गांव में भिक्षा मांगने के लिए जाते थे। महाबली हनुमान आगे कहते हैं कि वह से उस युवक से आगे कहता है कि उसी आश्रम का एक शिष्य जिस गांव में भिक्षा लेने जाता था उसी रास्ते में एक नदी मिलती थी। एक दिन उसने देखा कि एक युवक वृक्ष के पीछे छिपा है।
वह उस युवक के पास गया और उससे जाकर बोला, "भाई, तुम इस वृक्ष के पीछे छिपकर क्या देख रहे हो?" तब उस पेड़ के पास छुपे हुए युवक ने कहा, "अरे, तुझे नहीं दिख रहा क्या कि मैं क्या देख रहा हूं?" शिष्य नदी की ओर देखा तो वहां पर कुछ युवतियां पानी भर रही थी। तब उस शिष्य ने उस युवक से कहा, "अरे भाई, वहां पर तो युवतियां पानी भर रही हैं। इसमें छिपकर देखने वाली क्या बात है?"
युवक शिष्य की तरफ देखकर कहने लगता है, "अरे पागल, तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा क्या? कैसे यह औरतें नदी से पानी निकाल रही हैं। ज़रा उनकी अदाओं को तो देखो, उनके कोमल शरीर को देखो, उनकी पतली कमर मटके को उठाते समय बलखाती चाल को तो देखो, और उनके बाल उनकी कमर पर कैसे लहरा रहे हैं। मानव सुंदरता बिखरी हो।" शिष्य ने फिर नदी की तरफ देखा और इस बार वह इसे देखता ही रहा। परंतु अभी तक उसे तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा था और वह बिल्कुल निर्भय था। उसे किसी भी बात का कोई डर नहीं था। लेकिन अब वह छिप के उन युवतियों को देखने लगा।
जब वह छिपकर युवतियों को देख रहा था, तभी वह अचानक अंदर से अपने ही अंतर्मन से कांप गया और उसने कहा कि "यह हमें क्या कर रहा हूं मैं, जो कर रहा हूँ वह सही नहीं है। मुझे यहां से चले जाना चाहिए।" और फिर वह जल्दी से वहां से चला गया। वह आश्रम पहुंच जाता है। महाबली बजरंग बली आगे कहते हैं कि देवर्षि नारद जी वह जाकर अपने कार्यों में लग गया। लेकिन जो वह आज देखकर आया था, अब भी वही उसकी आंखों के सामने बार-बार आ रहा था। उसके मन में वही दृश्य चल रहा था। उसका मन वहीं सब कुछ देखने के लिए उतावला हो रहा था। उसका किसी भी काम में मन नहीं लग रहा था।
सुबह होते ही बहुत जल्दी ही वह शिक्षा के लिए निकलता है और उस नदी के पास वाले वृक्ष के पास जाता है जहां पर वह युवक पहले से मौजूद रहता था। शिष्य भी उसके साथ मिलकर युवतियों को छुप-छुप कर देखने लगता है। महर्षि आगे कहते हैं कि अब वह रोज ऐसा करने लगा। लेकिन अब उस शिष्य का मन किसी भी काम में नहीं लगता था। वह हमेशा ही किसी ना किसी प्रकार के विचारों में उलझा रहा है था। वह आश्रम के कार्यों को भी ठीक तरीके से नहीं कर पा रहा था। ना वह ठीक से सो पा रहा था, ना वह ठीक से खाना खा पा रहा था। उसका मन बेचैन रहने लगा था।
उसका मन बार-बार उन युवतियों के सौंदर्य को देखने के लिए उतावला होता रहता था। जब गुरु उसके शिक्षा देते थे, तब भी उसका मन कहीं और विचारों में खोया रहता था। जब शिष्य का यही रोज-रोज का हो गया, तो गुरु ने अपने शिष्य की इन हरकतों को भांप लिया था। महाबली हनुमान नारद जी को कथा सुनाते हुए आगे कहते हैं कि एक दिन गुरु ने शिष्य को अपने पास बुलाया और कहा, "आज से मैं भी तुम्हारे साथ भिक्षा मांगने चलूंगा। हम दोनों साथ-साथ भिक्षा मांगने चलेंगे।" तब शिष्य गुरु को मना करते हुए बोला, "नहीं, गुरुदेव, आप परेशान क्यों हो रहे हो? मैं अकेला ही ठीक से भिक्षा मांग सकता हूं।" गुरु ने शिष्य से कहा, "ठीक है, तुम अकेले ही भिक्षा मांगने जाओ।" जैसे ही गुरु जी ने इतनी बात कही, वह शिष्य तुरंत वहां से भिक्षा मांगने के लिए निकल गया।
उसके जाने के बाद, गुरु भी आश्रम से निकल गए और वह अपने शिष्य का पीछा करने लगे। वह उसके पीछे-पीछे चलने लगे, कुछ आगे जा आने के बाद गुरु ने देखा कि उनका शिष्य एक युवक के साथ एक वृक्ष के पीछे किसी अपराधी की तरह छिपा हुआ है, और छिपकर कुछ देख रहा है। गुरु भी अपने शिष्य के पीछे गए, उन्होंने सोचा कि आखिर उनका शिष्य क्या देख रहा है जिसे देखने के लिए वह वृक्ष के पीछे अपराधियों की तरह छिपा हुआ है। तब गुरु ने देखा कि उनका शिष्य वृक्ष के पीछे छुपकर युवतियों को देख रहा है जो कि नदी से पानी भर रही थी। तभी गुरु बोल पड़े, "शिष्य, तुम यह क्या देख रहे हो?" अपने गुरु की आवाज सुनकर, वशिष्ठ घबराकर विचलित हो गया और उसके पसीने छूटने लगे। उसका मन बेचैन हो गया था। उसने कुछ भी नहीं बोल पा रहा था, और उसके गुरु से नजर भी नहीं मिला पा रहा था। गुरु ने शिष्य की तरफ देखा और कहा, "हमारा शिष्य तो निर्भय था, उसे तो किसी भी चीज का डर नहीं लगता था। लेकिन तुम, तुम तो डर के मारे कांप रहे हो।" शिष्य ने गुरु से कहा, "मुझे माफ कर दो, गुरुजी, मेरा इसमें कोई दोष नहीं है। मेरे साथ यह जो युवक है, इसमें ही मुझे बहका दिया।" गुरु ने शिष्य से कहा, "कोई बात नहीं, पर इस बात का तुम ध्यान रखना कि हम जैसी संगति करते हैं, वैसा ही फल हमें प्राप्त होता है।"
वह महर्षि आगे कहते हैं कि प्रत्येक साथ रहने वाले मनुष्य विचार हमारे अंदर प्रवेश करते हैं, इसलिए अच्छी संगति करो, जिससे तुम्हारे अच्छे विचारों का प्रवेश हो। फिर गुरु और शिष्य आश्रम लौट आए और फिर से आश्रम के कार्यों पर ध्यान देने लगे। वह जिस रास्ते से पहले जाता था, उसने उस रास्ते को त्याग दिया और दूसरे रास्ते से जाने लगा। वह अपने काम को ध्यान से करता लेकिन धीरे-धीरे उसके अंदर क्रोध उत्पन्न हो गया और फिर वह दूसरों पर क्रोध करने लगा। बेचैन रहने लग गया। अब वह सही समय पर भोजन भी नहीं करता था, वह भोजन भी बहुत कम खाता था।
एक रात गुरु उस शिष्य के पास आए और उससे बोले कि "अब तक तुम कितनी बार अपने वादे से मुकर चुके हो?" इस सुनकर शिष्य अपने गुरु के चरणों में गिर गया और रोने लगा। रोते-रोते ही उसने गुरु से कहा, "गुरुदेव, मैं कई बार अपना वादा भूला हूं, फिर वादा कर लेता हूं, लेकिन हर बार मैं वादा भूला देता हूं। मेरा मन मेरे नियंत्रण में है ही नहीं। मैं बहुत कोशिश करता हूं कि मैं अपने मन से सारे बुरे विचारों को निकाल दूं, लेकिन मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर पा रहा हूं।" फिर गुरु ने शिष्य को कहा, "ठीक है, चलो मेरे साथ।" गुरु शिष्य को आश्रम के बगीचे में ले गए और कहा, "देखो, यहां पर कुछ नाली बनी हुई है, जिससे नदी का पानी इन पौधों तक आ रहा है। क्या तुम इस पानी के बहाव को रोक सकते हो?" शिष्य ने उत्तर दिया, "हां, गुरुजी, मैं इसे रोक सकता हूं।" फिर शिष्य ने मिट्टी उठाई और नाली में डाल दी। थोड़ी देर के लिए पानी रुक गया, लेकिन फिर से बहने लगा।
गुरु ने कहा, "अरे, यह क्या हुआ, पानी तो फिर से बह गया।" शिष्य ने कहा, "कोई बात नहीं, गुरुजी, मैं अभी इस पानी को आपको रोक के दिखाता हूं।" फिर शिष्य ने मिट्टी और पत्थर उठाकर नाली में डाल दिया। फिर उसने कहा, "देखो, गुरुजी, मैंने कहा था ना कि मैं पानी को रोक दूंगा। मैंने पानी को रोक दिखाया, आपकी बात मैंने पूरी कर दी।" तब गुरु जी मुस्कुराए और बोले, "अच्छा, जरा ध्यान से देखो, पानी रुका है, वह तो पीछे की नाली से अगले बगीचे में बह रहा है। और ध्यान से देखो, इस पत्थर के आगे भी आ गया, और यह पानी अपना रास्ता बदलकर फिर से आगे की तरफ बह जाएगा।" फिर गुरु ने शिष्य को समझाया कि "तुम्हारे साथ भी तो ऐसा ही चल रहा है। तुम बार-बार प्रयास कर रहे हो, पर हर बार तुम्हारा प्रयास टूटा रहा है, और यह हमेशा टूटता ही रहेगा। तुम कितना भी मिट्टी पत्थर रख लो, लेकिन पानी तो अपना रास्ता बना ही लेगा।" इस सब को देखकर शिष्य ने गुरु से कहा, "हे गुरुदेव, क्या आपके पास कोई तरीका नहीं है, जिससे मैं गंदे विचारों को रोक सकूं, और यह मेरे मन में ना आए?"
गुरुजी ने अपने शिष्य को एक नदी के किनारे ले जाया, जहां से बगीचे में पानी आ रहा था। गुरु ने शिष्य से कहा कि यह पानी उसी नदी से आ रहा है, और उसने स्वयं ही उस रास्ते को बंद कर दिया जहां से पानी बगीचे में जा रहा था। शिष्य ने सोचा कि यदि यहां से पानी को बंद कर दिया जाए, तो आगे की नाली में पानी जाने का कोई रास्ता नहीं बचेगा। फिर वह बहुत मेहनत करके नदी के पास पहुंचा और पत्थरों और मिट्टी से उस रास्ते को बंद कर दिया। फिर उसने गुरुजी को इस बात की सूचना दी कि पानी बंद हो गया है। गुरु ने शिष्य को समझाया कि इस प्रकार पौधों को पानी कहां से मिलेगा। कुछ पौधे तो रोज़ पानी की ज़रूरत है, और अगर पानी नहीं पहुंचेगा तो वे मुरझा जाएंगे। इसलिए, गुरु ने शिष्य को यह समझाया कि संतुलन बनाए रखना हमारे जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
गुरुजी ने शिष्य से कहा कि अगर मैं तुम्हें कहूं कि तुम आम के बारे में मत सोचो, तो तुम्हारे मन में सबसे पहले किसका चित्र आएगा? शिष्य ने कहा कि गुरुजी, मेरे मन में तो पहला चित्र आम का ही आएगा। गुरुजी ने बताया कि जब हम गंदे विचारों को जबरदस्ती रोकने का प्रयास करते हैं, तो वे और और मजबूती के साथ हमारे अंदर प्रवेश करते हैं। इसलिए हमें उन्हें कभी भी दबाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। फिर गुरुजी ने शिष्य को समझाया कि हमारे गंदे विचार बुरे लोगों की संगति करने की वजह से भी आते हैं। कई बार ऐसा होता है कि काम भाव हमारे अंदर होता ही नहीं है, लेकिन कुछ अश्लील लोगों के साथ रहने की वजह से यह हमारे अंदर हावी हो जाता है।
फिर शिष्य ने कहा कि गुरुदेव, आप सत्य कह रहे हैं। मैं अपने मार्ग से भटक गया था। महर्षि उस युवक से आगे कहते हैं कि वह शिष्य उस रात बहुत ही चैन की नींद सोया, सुबह अपने कार्यों को पूरे मन से किया। और फिर सुबह वह भिक्षा लेने के लिए उसी रास्ते से गया, जहां वह युवक आज भी वृक्ष के पीछे छुपकर उन युवतियों को देख रहा था। वह शिष्य नदी पर गया, जहां वह युवतियां पानी भर रही थीं। उसने उनसे पानी मांगा, उनमें से एक ने उसे पानी पिलाया और उस शिष्य ने उनके चरण छूए। शिष्य को उन्होंने आशीर्वाद दिया कि तुम्हारा कल्याण हो। उसका मन सकारात्मक ऊर्जा से भर गया। उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई थी, जैसे उस शिष्य को कुछ खोया हुआ वापस मिल गया हो।
वह वापस अपने रास्ते से जाने लगा, तभी पीछे से वह युवक आ गया, जो वृक्ष के पीछे छुपा हुआ था। वशिष्ठ के पास आया और बोला, "अरे भाई, क्या बात है। आज तो तुमने नजदीक से दर्शन कर लिए, तुम तो मुझसे भी आगे निकल गए।" तब शिष्य ने कहा, "हम हमेशा दूसरे के दर्शन करने में ही व्यस्त रहते हैं। अपने दर्शन कर ही नहीं पाते। तुम कब तक इस वृक्ष के पीछे छूटते रहोगे? किसी को पसंद करते हो तो उससे कह दो, अगर वह भी तुम्हें पसंद करती है तो शादी कर लो, और उससे पहले तुम कुछ बन जाओ, अपने आप को पहचान लो। ऐसे अपना समय बर्बाद मत करो।" फिर वह युवक रोज उस शिष्य से मिलने लगा और उस युवक ने नदी पर जाना त्याग दिया। फिर वह युवक अपने जीवन में कुछ बनने के लिए संघर्ष करने लगा।
इस पाठ के संगति का विषय बड़ा महत्वपूर्ण है। गुरु की शिक्षा से, एक शिष्य और एक युवक ने अपनी वासनाओं को परित्याग कर दिया। अब, महाबली बजरंग बली ने समझा कि कैसे मनुष्य को गंदे विचारों से बचाया जा सकता है। इससे उनकी श्रद्धा और समर्पण में वृद्धि हुई। नारद जी ने भी उन्हें संबोधित किया और समझाया कि विचारों को परिवर्तित करने के लिए संगति को परिवर्तित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि दोषी मानना उचित नहीं है, बल्कि अपने विचारों को संतुलित करना जरूरी है। इस वीडियो के माध्यम से भी यह सन्देश साझा किया गया है, जिससे लोगों को समर्पण की भावना और संगति के महत्व का अनुभव हो सके।
अश्लील विचारों से छुटकारा क्या करे ?
एक आध्यात्मिक उपाय
अश्लील विचारों से छुटकारा पाने का पहला कदम आत्मा से जुड़ना है। जब जीवन में किसी भी मोड़ पर आगे बढ़ने का दरवाजा बंद हो जाता है और हमें कोई समाधान नहीं दिखता, तो केवल दिव्य ज्ञान ही हमें समस्या से बाहर निकाल सकता है।
मंत्र जाप
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस धर्म से हैं - हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई। भगवानुवाच यदि वह बात कोई महत्व की है। जिसके ज्ञान से आपके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस विषय में मंत्र मन को कुछ शांति दे सकते हैं।
तीन महत्वपूर्ण मंत्र
मंत्र में व्यक्ति को किसी भी प्रकार की परेशानी से बाहर निकालने की बहुत शक्ति होती है। इस मामले में कुछ मंत्र आपकी मदद कर सकते हैं। इसके उच्चारण मात्र से समस्या का समाधान हो जाता है। इस विषय पर तीन मंत्र हैं जिनका एक के बाद एक जप करने से लाभ मिलता है।
मंत्र- "ॐ श्री दुर्गायै नमः - ॐ नाम: शिवाय - 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" इस मंत्र का जाप एक साथ करना चाहिए। माना जाता है कि इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि यह व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेता है। इसका जाप करने से व्यक्ति भगवान की हरियाली में लीन हो जाता है और मन में चल रहे विचारों को भूल जाता है। इस मंत्र को सुनने मात्र से भी लाभ होता है।
न्यास आसन
यदि जप के दौरान उचित आसन धारण करके मंत्रों का जाप किया जाए तो मुझे बहुत शांति मिलती है। इसका न्यासा नामक प्रभाव ज्ञात है, जिसे प्रतिदिन करने पर चमत्कारिक रूप से लाभ होता है। न्यास आसन अत्यंत सफल है। इसके लिए अपने दाहिने हाथ की पांचों अंगुलियों को जोड़ लें। फिर इसे अपने शरीर के मध्य चक्र यानी सभी चक्रों के केंद्र पर ले जाएं।